इन उन्मादों से डरा नहीं
सन्नाटों पे विचलित हूँ
चुभती है शांति कानो में
हलचल की आस में जीवित हूँ.
है श्वासों में हुंकार भरा
कुतूहल रगों का पानी है
संगीत है बस सैलाबों में
विध्वंसों में लिप्त वाणी है.
लाचारी की बीमारी को
इस बेबस दुनियादारी को
शांति के क्रियाकलापों को
वरदानो को अभिशापों को.
पंखो में दबा के उड़ता हूँ
राखों में बिखर फिर जुड़ता हूँ.
है बैर नहीं अभिमान नहीं
है भूत भविष्य का ज्ञान नहीं
क्रांति की हिलोरे है मस्तक में
ये जीव मेरी पहचान नहीं.
शीलता भाए लाशों को
रक्त में बैचेन गर्मी है
मर्यादा सावंग सी लगती है
फितरत मे अपने बेशर्मी है.
प्रतिहिंसा की है प्यास नहीं
बस नव सृजन पर अर्पित हूँ
चुभती है शांति कानों में
हलचल की आस में जीवित हूँ.
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