Poem on Nature in Hindi



Suresh Dungdung...


खयालों के समंदर में खोयी सोचती हूँ कभी-कभी 

क्यों रौशनी हर रात अंधेरे में समा जाती है ?
क्यों ओस की बूंदे भाप बनकर उड़ जाती है ?
जब लौटना ही है किनारों पे आकर
तो क्यों लहरे बार-बार थपेड़े खाती है?

सवालों के ज़वाब कुछ यूं भी मिलते हैं कभी-कभी

जो न होता अँधेरा तो रौशनी को कौन सराहता ?
जो न उड़ती ओस तो उसकी सुन्दरता कौन निहारता ?
जो न लौट कर आती लहरे किनारों पे फिर से
तो तूफानों में फँसा नाविक हौंसला कहाँ से पाता ?

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