Short Story in Hindi with Moral



एक गुरु और शिष्य कहीं जा रहे थे. सामने से आने वाले व्यक्ति ने अभिवादन किया, तो गुरु ने शिष्य से कहा कि देखो मेरे चरित्र से प्रभावित होकर, मेरे अनुभवी जीवन से प्रभावित होकर, मेरी वयोवृद्धता से प्रभावित होकर उसने मेरा अभिवादन किया है. शिष्य ने कहा कि आप भुलावे में हो, आप भ्रम में चल रहे हो, आपको कौन स्मरण करता है. उसने तो इस युवावस्था की स्थिति में मेरेचरित्र को देखा है, और मेरे चरित्र और जीवन को देख कर मेरा सम्मान किया है. गुरु ने कहा कि मेरा अभिवादन किया और शिष्य ने कहा कि मेरा अभिवादन किया. बड़ी लड़ाई की स्थिति बन गयी. उन्होंने विचार किया कि हम लड़ते रहेंगे तो कोई समाधान नहीं मिलेगा, इससे अच्छा है कि हम उस व्यक्ति से जा के पूछ लेते हैं कि उसने किसको वंदन किया. गुरु और शिष्य ने उस आदमी को पकड़ लिया और पूछा कि तुमने वंदन किसको किया था. वह भी बड़ा आश्चर्यचकित हो गया और सोचने लगा. सोचकर उसने कहा : जो सम्मान पाने पर अभिमान नहीं करते और कभी सम्मान नहीं करने पर हीन भावना नहीं लाते मैंने उन्हें ही वंदन किया है. 

Suresh Dungdung......

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